
रिपोर्ट : बबलू कुमार
बाघमारा । नवागढ़ डुमरा राजबाड़ी परिवार द्वारा आज भी दुर्गा मंदिर राजबाड़ी डुमरा में मां दुर्गा की पूजा पौराणिक व पारंपरिक विधि विधान से किया जाता। इस सिलसिला पिछलें तीन सौ साल से निरंतर जारी है। मंदिर के आचार्य शीतल मिश्रा ने बताया की 300 वर्ष पूर्व नवागढ़ डुमरा राजबाड़ी के पूर्व राजा प्रताप नारायण सिंह ने डुमरा राजबाड़ी दुर्गा मंदिर में दुर्गा मां की प्रतिमा स्थापित कर पूजा की शुरुआत की थी। इसके बाद से निरंतर यह दुर्गा पूजा करने की परंपरा राजपरिवार के राजा बनवारी लाल, नीलकंठ नारायण सिंह, कामख्या नारायण सिंह, सत्येंद्र नारायण सिंह एवं वर्तमान में परिवार के सदस्य राजा मेघेंद्र नारायण सिंह द्वारा जारी रखा गया है। पूजा की समस्त सामग्री पुरुलिया से लाया जाता है। पूजा में होने वाली समस्त खर्चें की राशि राजपरिवार द्वारा वहन किया जाता है।
*राज परिवार द्वारा प्रसाद बनाया जाता है*
उन्होंने यह भी बताया कि 2017 में मंदिर में काडा बली की प्रथा बंद हो गई है। जबकि पूर्व के वर्षो में काडा बलि दिया जाता था। वर्तमान में कलश स्थापना, सप्तमी, अष्टमी एवं नवमी को बकरा बलि होती है। पूर्व के वर्षो से आज भी महाअष्टमी को राज परिवार के सदस्यों द्वारा अरसा पुआ आदि महाप्रसाद तैयार किया जाता हैं। वही नवमी के दिन कुमारी पूजा एवं हवन के बाद पूजा की समाप्ति होती है। वही विजया दसवी को अहले सुबह नव पत्रिका रूपी नव दुर्गा को पालकी के द्वारा राजा तालाब डुमरा में पारंपरिक विधि विधान व वैदिक मंत्रोच्चार के साथ नव दुर्गा का विसर्जन किया जाता।
*मेला का आयोजित व आदिवासी समाज द्वारा विषहरी नृत्य किया जाता है*
विजयादशमी के दिन आसपास के आदिवासी गांव से आदिवासी समाज के लोगों द्वारा मां दुर्गा को प्रसन्न करने के लिए सामूहिक विषहरी नृत्य प्रस्तुत किया जाता हैं। ये परंपरा आज भी कायम है। साथ ही दुर्गा मंदिर के मैदान में ग्रामीण मेला आयोजन किया जाता है। जिसमें हजारों श्रद्धालु दूर दराज से मां दुर्गा की पूजा अर्चना एवं दर्शन कर मेला का आनंद लेते है।
*रजवार परिवार ही प्रतिमा का निर्माण करते है*
परंपरा के मुताबिक रजवार परिवार द्वारा ही निरंतर मां दुर्गा की प्रतिमा निर्माण किया जाता है। पूर्व में खोनाठी रथटांड के माधव रजवार, नारू रजवार एवं वर्तमान में नारू का पुत्र कुलदीप रजवार द्वारा प्रतिमा का निर्माण किया जा रहा है।